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उरांव जनजाति और बृहदछोटानागपुर के आदि बाशिंदे कुड़मि जनजातिNews

* उरांव जनजाति और बृहदछोटानागपुर के आदि बाशिंदे कुड़मि जनजाति * --- गुणधाम मुतरुआर  1892 में प्रकाशित एथनोग्राफिक ग्लौसरी वॉल्यूम -ll, द ट्...

*उरांव जनजाति और बृहदछोटानागपुर के आदि बाशिंदे कुड़मि जनजाति*
--- गुणधाम मुतरुआर 
1892 में प्रकाशित एथनोग्राफिक ग्लौसरी वॉल्यूम -ll, द ट्राइब्स एंड कॉस्टस ऑफ़ बेंगल (लेखक - एच एच रिस्ले) में उल्लेख मिलता है कि उरांव जनजाति का मूल निवास स्थान पश्चिमी भारत था। वे लोग कैमूर की पहाड़ियॉं और शाहाबाद के रोहतास क्षेत्र में बसे हुए थे। मुस्लिम शासकों के आक्रमण के कारण उरांव दो भागों में विभक्त हो गए --
एक भाग अपने राजा के साथ गंगा तट की ओर चला गया और राजमहल की पहाड़ियों में बस गया।
दूसरा भाग अपने छोटे राजा के साथ सोन और उत्तर कोयल नदी के आसपास छोटानागपुर के उत्तर पश्चिम भाग में आकर बस गया।
कुछ लोगों का मत है कि उरांव लोग लोहरदगा क्षेत्र में आकर मुंडाओं को विस्थापित कर दक्षिण की ओर बस गए 
पीपुल ऑफ़ इंडिया वॉल्यूम - XVI, PART - II में लिखा है कि उरांव की मातृभाषा "कुडुख " हैं।
छोटानागपुर आने से पहले उनका मूल निवास स्थान कोंकण माना गया है। समाजशास्त्री एस.सी. राय के अनुसार, चेरो राजाओं द्वारा निष्कासन के कारण ही उरांव लोग रोहतास छोड़कर आए। इसी प्रकार , रितेन घोष ने अपनी पुस्तक " आजकेर पश्चिम राढ़ " में लिखा है कि उरांव इस क्षेत्र के मूल आदिवासी नहीं है, बल्कि लगभग 200 से 250 वर्ष पूर्व यहां आए और स्थायी रूप से बस गए।
स्पष्ट है कि ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार छोटानागपुर उरांवों का प्राचीन मूल निवास नहीं है। दूसरी ओर, कुड़मि जनजाति का इतिहास इस क्षेत्र में अत्यंत प्राचीन, लगभग 65000 वर्ष पुराना माना जाता है। इस आधार पर यह कहना तर्कसंगत है कि छोटानागपुर का आदि बाशिंदा कुड़मि समाज रहा हैं।
आज विडंबना यह है कि विशेष रूप से उरांव समाज के कुछ ईसाई समूह के लोग कुड़मि समाज के अनुसूचित जनजाति की मॉंग का विरोध कर रहे हैं, जबकि स्वयं उरांव इस भूभाग के आदिवासी मूल निवासी नहीं हैं।
इतिहास बताता है कि छोटानागपुर में उरांव समाज का प्रवास मात्र 250 से 300 वर्ष पुराना है। अतः ये लोग (बाहरी समुदाय) किसी भी रूप में इस भूभाग के आदि निवासी नहीं कहे जा सकते। 
इसलिए आवश्यक है कि उरांव समाज के भाई-बहन पहले अपने इतिहास का गहन अध्ययन करें और उसके पश्चात किसी अन्य जनजाति का विरोध करें। कुड़मि समाज के हक-अधिकार को चुनौती देना न केवल ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है, बल्कि आपसी सौहार्द्र को भी आघात पहुंचता है।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि छोटानागपुर का वास्तविक आदिवासी समाज कुड़मि है, और अन्य समाजों को उनकी पहचान और अधिकार का सम्मान करना चाहिए। सभी जनजातियॉं मिलकर एक-दूसरे को भाई मानें और बाहरी शक्तियों के भड़कावे में आकर आपस में विरोध न करें। इससे मानव सभ्यता की प्रगति रुक जाने की संभावना है।
प्रस्तुति : *गुणधाम मुतरुआर*
                   (भूगोल-शिक्षक)
अनुग्रह नारायण +2 उच्च विद्यालय पिलीद, ईचागढ़, सरायकेला-खरसावां झाड़खंड।

 रिपोर्ट 

     बानेश्वर महतो 

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