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महिलाओं ने पारंपरिक धरोहर को जीवंत बनाए रखा है-अंबा प्रसाद

  महिलाओं ने पारंपरिक धरोहर को जीवंत बनाए रखा है-अंबा प्रसाद महिलाओं ने अपनी लोकसंस्कृति को बचाने और उसे एक नए आयाम तक पहुँचाने में महत्वपूर...

 

महिलाओं ने पारंपरिक धरोहर को जीवंत बनाए रखा है-अंबा प्रसाद


महिलाओं ने अपनी लोकसंस्कृति को बचाने और उसे एक नए आयाम तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई-अंबा प्रसाद


Barkagaon/Hazaribagh 


बड़कागांव की पूर्व विधायक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय सचिव, पश्चिम बंगाल सह प्रभारी अंबा प्रसाद ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के पूर्व संध्या पर महिलाओं के लिए शुभकामना संदेश दिया है।

अंबा प्रसाद ने महिलाओं को पारंपरिक धरोहर को जीवंत बनाए रखने का सूत्रधार बताते हुए कहा कि झारखंड की महिलाओं ने अपनी लोकसंस्कृति को बचाने और उसे एक नए आयाम तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

अंबा प्रसाद ने कहा कि झारखंड की लोक संस्कृति, जिसमें पारंपरिक लोककला, लोकगीत, नृत्य, हस्तशिल्प, खानपान और रीति-रिवाज शामिल हैं, को संरक्षित और संवर्धित करने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने न केवल अपनी पारंपरिक धरोहर को जीवंत बनाए रखा है, बल्कि उसे समकालीन संदर्भों में पुनर्परिभाषित भी किया है, जिससे यह आजीविका और स्वावलंबन का साधन बना है।

आगे उन्होंने कहा कि महिलाओं ने सोहराय, कोहबर, जादोपटिया, पिठोरा चित्रकला जैसी पारंपरिक कलाओं को संजोया है और इन्हें नए माध्यमों पर प्रस्तुत कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। लाख की चूड़ियाँ, टसर सिल्क कढ़ाई, बांस और लकड़ी के हस्तशिल्प में उनका योगदान सराहनीय है।


महिलाओं ने लोकगीत और नृत्य की विरासत को जीवंत बनाए रखी


महिलाएं पारंपरिक करमा, सरहुल, फगुआ, सोहर जैसे लोकगीतों और झूमर, छऊ, पाइका जैसे लोकनृत्यों को संरक्षित कर रही हैं। इन सांस्कृतिक विधाओं को वे न केवल पारंपरिक आयोजनों में निभा रही हैं, बल्कि सांस्कृतिक महोत्सवों और मंचों पर भी प्रस्तुत कर रही हैं।

रीति-रिवाजों और त्योहारों का संरक्षण

सरहुल, करमा, माघी, टुसू, सोहराय जैसे पारंपरिक पर्वों में महिलाओं की भागीदारी लोक संस्कृति को सहेजने में सहायक रही है। ये पर्व सामुदायिक एकजुटता और प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाते हैं।

पारंपरिक खानपान को बनाए रखना

महिलाओं ने धुसका, पिट्ठा, चिल्का, महुआ लड्डू, सत्तू पराठा जैसे पारंपरिक व्यंजनों को न केवल पारिवारिक स्तर पर बनाए रखा, बल्कि इनके व्यवसायीकरण के माध्यम से आजीविका भी अर्जित की है।

आधनिक मंचों पर लोक संस्कृति का प्रचार

झारखंड की महिलाएं सरस मेला, हस्तशिल्प प्रदर्शनी, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कला महोत्सवों में भाग लेकर अपनी संस्कृति को व्यापक पहचान दिला रही हैं।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं के तारीफों के पुलिंदे बांधते हुए कहा कि झारखंड की महिलाओं ने अपनी लोक संस्कृति को बचाने और उसे एक नए आयाम तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह प्रयास न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोने में मददगार है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण का भी माध्यम बन रहा है। इन पहलों को और प्रोत्साहन देकर झारखंड की समृद्ध परंपराओं को भावी पीढ़ियों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।


ब्यूरो रिपोर्ट हजारीबाग

Ashok Banty Raj: 9835533100

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