शोध में नैतिकता की अनदेखी नहीं होनी चाहिए: प्रो. धर्मेंद्र कुमार दुसरे दिन रिसर्च एथिक्स पर हुई व्यापक चर्चा। हजारीबाग झारखंड विनोबा भावे...
शोध में नैतिकता की अनदेखी नहीं होनी चाहिए: प्रो. धर्मेंद्र कुमार
दुसरे दिन रिसर्च एथिक्स पर हुई व्यापक चर्चा।
हजारीबाग झारखंड
विनोबा भावे विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे दिन पहले सत्र में केंद्रीय विश्वविद्यालय, दक्षिण बिहार, गयाजी के सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रोफेसर धर्मेंद्र कुमार काव्य खान हुआ। इन्होंने शोध नीतिशास्त्र और शोध प्रक्रिया के विभिन्न नैतिक आयामों पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी शोध का मूल केवल निष्कर्ष प्राप्त करना नहीं, बल्कि उस प्रक्रिया को ईमानदारी, पारदर्शिता और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ संपन्न करना होता है। अपने वक्तव्य में डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने शोध की नैतिक परंपरा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बीसवीं शताब्दी के आरंभ से लेकर आज तक शोध नीतिशास्त्र ने अनेक परिवर्तन और सुधार देखे हैं। उन्होंने 1906 से लेकर 2017 तक की महत्वपूर्ण नैतिक संहिताओं की व्याख्या करते हुए एपीए द्वारा निर्धारित शोध सिद्धांतों और शोध नैतिकता संहिता की व्यावहारिक जानकारी दी। शोध कार्य करते समय अनुसंधानकर्ता को यह समझना आवश्यक है कि वह न केवल ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में संलग्न है, बल्कि वह समाज और मानवता के प्रति भी उत्तरदायी है। इसलिए शोध का हर चरण अर्थात, विषय का चयन, डेटा संग्रहण, विश्लेषण तथा निष्कर्ष, नैतिक मूल्यों के अधीन होना चाहिए। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि किसी भी अध्ययन में भाग ले रहे व्यक्तियों की पूर्व सहमति लेना एक नैतिक और कानूनी अनिवार्यता है।
साहित्यिक चोरी को शोध की सबसे गंभीर नैतिक चूक बताते हुए डॉ. कुमार ने कहा कि यह शोध के प्रति आपकी नीयत और दृष्टिकोण को दर्शाता है। इससे बचने के लिए शोधार्थियों को संदर्भ देने की विधियों में पारंगत होना चाहिए, साथ ही मूल लेखक की बातों को अपने शब्दों में सार्थक भावांतरण के साथ प्रस्तुत करने की कला भी सीखनी चाहिए। डॉ. कुमार ने रिसर्च एथिक्स में कर्तव्य आधारित दृष्टिकोण यानी डेनटोलॉजिकल एप्रोच और प्रसिद्ध दार्शनिक इमैनुएल कांट के नैतिक दृष्टिकोण की चर्चा करते हुए कहा कि शोधकर्ता को अपने दायित्वों के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो। उन्होंने मानवाधिकार, सामाजिक मूल्य और पशु कल्याण जैसे विषयों को शोध नैतिकता से जोड़ते हुए कहा कि किसी भी अनुसंधान में इन पहलुओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।
आज शोध के क्षेत्र में 150 से अधिक नैतिक दिशानिर्देश लागू हैं, जिन्हें विश्वभर में मान्यता प्राप्त है। डॉ. कुमार ने विशेष रूप से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित आचरण संहिता को लागू करने पर ज़ोर दिया। उन्होंने Informed consent पर जोर देने की बात की । एथिकल गाइडलाइन मे डीबिरीफ (Dbrief ) को अनिवार्य बताया। उन्होंने यह भी कहा कि शोध में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और सत्यनिष्ठा को बनाये रखना तो इन नियमो का पालन होना जरूरी है।
वहीं दूसरे सत्र में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सादिक रज़्ज़ाक ने शोध मापन के स्तरों पर अपना वक्तव्य देते हुए बताया कि किसी भी शोध की वैज्ञानिकता इस बात पर निर्भर करती है कि शोध में प्रयुक्त मापन विधियाँ कितनी उपयुक्त और सुसंगत हैं। उन्होंने मापन के चार प्रमुख स्तरों नाममात्र स्तर, क्रम स्तर, अंतर स्तर और अनुपात स्तर की विस्तार से व्याख्या की, तथा यह स्पष्ट किया कि किस प्रकार ये विभिन्न स्तर शोध के उद्देश्य और आंकड़ों की प्रकृति के अनुसार प्रयोग किए जाते हैं। डॉ. रज़्ज़ाक ने बताया कि नाममात्र स्तर श्रेणियों की पहचान के लिए उपयोगी होता है, जबकि अनुपात स्तर संख्यात्मक आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करने में सहायक होता है। उन्होंने उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि यदि मापन विधि उचित नहीं हो तो शोध का निष्कर्ष भी भ्रमपूर्ण हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि एक अच्छे शोधकर्ता को इन स्तरों की वैज्ञानिक समझ होनी चाहिए ताकि वह अपने अनुसंधान में मापनीयता और विश्लेषण की गुणवत्ता बनाए रख सके।
आखिरी दिन के अंतिम सत्र को वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष डॉ मोख्तार आलम और डॉ सरोज रंजन ने संबोधित किया। कार्यक्रम मे मनोविज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ अविनाश, भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सरोज सिह, युसेट निदेशक डॉ ए के साहा , डॉ तनवीर आलम , डॉ राजेंद्र मिस्त्री, डॉ जयप्रकाश आनंद, डॉ बलदेव राम , परिक्षित आदि शिक्षक उपस्थित थे।धन्यवाद ज्ञापन डॉ गंगा नंद सिंह ने किया। कार्यक्रम को सफल आयोजन मे मो बेलाल, प्रियंका कुमारी, अनु कुमारी, मुकेश कुमार तथा सुरज भान सिंह ने मुख्य भूमिका निभाई।
ब्यूरो रिपोर्ट हजारीबाग झारखंड
Ashok Banty Raj - 9835533100
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