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चंदेलों का जल प्रबंधन: अतीत की विरासत, आज के संकट का समाधान...

बुंदेलखंड का अर्ध-शुष्क क्षेत्र, जो सूखे और जल संकट के लिए कुख्यात है, एक समय पर जल प्रबंधन के क्षेत्र में उत्कृष्टता का प्रतीक था। 9वीं से ...








बुंदेलखंड का अर्ध-शुष्क क्षेत्र, जो सूखे और जल संकट के लिए कुख्यात है, एक समय पर जल प्रबंधन के क्षेत्र में उत्कृष्टता का प्रतीक था। 9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच चंदेल वंश ने यहां ऐसी जल प्रबंधन प्रणाली विकसित की, जिसने न केवल तत्कालीन जल आवश्यकताओं को पूरा किया, बल्कि भविष्य की जरूरतों के लिए भी जल संरक्षण का एक स्थायी मॉडल प्रस्तुत किया। जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और जल आपूर्ति की उनकी अद्वितीय तकनीकें आज भी प्रासंगिक हैं।
चंदेल शासकों ने "जल ही जीवन है" की अवधारणा को समझते हुए जल संरक्षण को शासन का अभिन्न हिस्सा बनाया। उन्होंने भूगोल और प्राकृतिक ढलानों का उपयोग कर तालाब, बावड़ियां, बांध और एनीकट बनाए। इन जल संरचनाओं का निर्माण इस प्रकार किया गया कि वर्षा जल को संग्रहीत कर कृषि, घरेलू उपयोग और भूजल पुनर्भरण के लिए इस्तेमाल किया जा सके। इनका डिज़ाइन पर्यावरणीय संतुलन और सामुदायिक भागीदारी की दृष्टि से भी अनुकरणीय था।
चंदेलों की जल संरचनाओं के प्रकार
1. तालाब: जल संचयन का आधार
चंदेलों ने बड़े और छोटे तालाबों का निर्माण किया, जिनका उपयोग पेयजल, सिंचाई और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता था। महोबा में स्थित शिव सागर, मदन सागर और कीरत सागर जैसे विशाल तालाब इस बात के प्रमाण हैं कि जल प्रबंधन की यह प्रणाली कितनी उन्नत थी।
तकनीकी विशेषताएं:
स्थान का चयन: निचले इलाकों और ढलानों पर तालाब बनाए गए ताकि वर्षा का पानी आसानी से एकत्र हो सके।आकार और डिज़ाइन: तालाबों के आकार गोल, अर्धचंद्राकार और चौकोर होते थे, जिनके किनारे पक्की दीवारों से सुरक्षित होते थे ताकि रिसाव को रोका जा सके।
उपयोग: इन तालाबों का उपयोग केवल कृषि और पेयजल के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों और तीर्थ यात्राओं के लिए भी किया जाता था।
2. बांध और एनीकट: नदियों पर नियंत्रण
चंदेलों ने नदियों और नालों के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए बांध और एनीकट का निर्माण किया। ये संरचनाएं नदी के प्रवाह को नियंत्रित करतीं और पानी को धीमे-धीमे छोड़ा जाता, ताकि वह तालाबों और जलाशयों में एकत्र हो सके।
तकनीकी विशेषताएं:
निर्माण तकनीक: पत्थरों, मिट्टी और चूने का उपयोग कर इनका निर्माण किया जाता था।
प्रभाव: इन संरचनाओं ने नदियों की धारा को नियंत्रित किया और भूजल पुनर्भरण में मदद की।
उदाहरण: बुंदेलखंड की उर्मिल नदी पर बने एनीकट आज भी जल पुनर्भरण में सहायक हैं।
3. बावड़ियां और कुएं: भूजल पुनर्भरण के साधन
चंदेलों ने गहरे कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, जो भूमिगत जल को पुनर्भरित करने का कार्य करते थे। खजुराहो और महोबा की बावड़ियां आज भी उस काल की जल प्रबंधन प्रणाली का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
तकनीकी विशेषताएं:
डिज़ाइन: बावड़ियों का डिज़ाइन सीढ़ीनुमा होता था ताकि लोग आसानी से पानी निकाल सकें।
प्रभाव: बावड़ियों में वर्षा का पानी इकट्ठा होता और धीरे-धीरे जमीन में रिसकर भूजल पुनर्भरण करता।
उपयोग: बावड़ियों का उपयोग पेयजल, सामुदायिक मिलन और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता था।
4. भूजल पुनर्भरण: भविष्य के लिए जल भंडारण
चंदेलों ने पानी को भूमि में पुनर्भरित करने के लिए विशेष तकनीकों का उपयोग किया। संवेदनशील क्षेत्रों में संकलन कुंड (Collection Pits) बनाए गए, जिनमें वर्षा जल अवशोषित होकर भूजल स्तर को स्थिर बनाए रखता था।
तकनीकी विशेषताएं:
प्रणाली: भूमि की जलधारण क्षमता को बढ़ाने के लिए पत्थरों और छिद्रयुक्त मिट्टी का उपयोग किया जाता था।
प्रभाव: भूजल स्तर स्थिर रहता था और कुओं का जलस्तर बरकरार रहता था।
सामुदायिक भागीदारी और जल कर प्रणाली
चंदेलों की जल प्रबंधन प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता थी सामुदायिक भागीदारी। जल संरचनाओं के निर्माण और रखरखाव के लिए ग्रामीणों का सहयोग अनिवार्य था। ग्रामीण समुदाय श्रमदान के माध्यम से इन संरचनाओं की खुदाई और मरम्मत करते थे।
जल कर (Water Tax) प्रणाली:
चंदेल शासन ने "जल कर" नामक कर व्यवस्था लागू की, जिससे प्राप्त राजस्व का उपयोग तालाबों और बावड़ियों की मरम्मत और रखरखाव के लिए किया जाता था।
यह प्रणाली पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल का एक प्रारंभिक उदाहरण है, जिसे आज जल प्रबंधन में अपनाया जा रहा है।
आधुनिक जल संकट के समाधान में चंदेलों की प्रासंगिकता
बुंदेलखंड क्षेत्र, जो आज सूखे और जल संकट का सामना कर रहा है, चंदेलों की जल प्रबंधन प्रणाली से बहुत कुछ सीख सकता है। उनकी तकनीकों का उपयोग करके रेन वाटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संचयन), वाटरशेड प्रबंधन और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे आधुनिक उपायों को प्रभावी बनाया जा सकता है।
प्राचीन तकनीकें, आधुनिक समाधान
1. तालाबों का पुनर्जीवन: जल संचयन के लिए चंदेलों के तालाबों को पुनर्जीवित कर पेयजल और सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकता है।
2. बावड़ियों की बहाली: बावड़ियों का पुनर्निर्माण भूजल पुनर्भरण के लिए एक प्रभावी समाधान हो सकता है।
3. चेक डैम और एनीकट: चेक डैम और स्टॉप डैम की वर्तमान अवधारणा चंदेलों के बांध और एनीकट से प्रेरित है।
4. पारिस्थितिकी के साथ सामंजस्य: चंदेलों ने जल संरचनाओं को प्राकृतिक पारिस्थितिकी के साथ जोड़कर निर्माण किया था। आज के समय में यह टिकाऊ जल प्रबंधन के सिद्धांतों के अनुरूप है।
निष्कर्ष
चंदेलों का जल प्रबंधन मॉडल अतीत की एक अमूल्य धरोहर है, जिसे वर्तमान समय में जल संकट के समाधान के रूप में अपनाया जा सकता है। उनकी तकनीकें पर्यावरणीय संतुलन, सामुदायिक भागीदारी और स्थायी जल उपयोग के सिद्धांतों का अद्भुत उदाहरण हैं।
आज, जब बुंदेलखंड और देश के अन्य हिस्से जलवायु परिवर्तन और अनिश्चित वर्षा के कारण संकट में हैं, तो चंदेलों के विचार और तकनीकें "सतत जल प्रबंधन" (Sustainable Water Management) के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाशस्तंभ के रूप में उभर सकती हैं। रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वाटरशेड प्रबंधन और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर में चंदेलों की तकनीकें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी हजार वर्ष पहले थीं।
"अतीत के चंदेलों की जल प्रबंधन प्रणाली आज के जल संकट से निपटने के लिए एक अनुकरणीय मार्गदर्शक है। हमें इसे अपनाने और पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है 
रुद्र रावत, रुद्रांक 
छात्र पर्यावरण विज्ञान बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी

जनपद महोबा बुन्देलखण्ड भगवती प्रसाद सोनी

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