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गया विवादित जमीन पर निर्माण: जांच में 119 दिन की देरी, प्रशासन की भूमिका पर सवाल News

विवादित जमीन पर निर्माण: जांच में 119 दिन की देरी, प्रशासन की भूमिका पर सवाल  सदर अनुमंडल न्यायालय** में एक विवादित जमीन पर निर्माण को रोकने...


विवादित जमीन पर निर्माण: जांच में 119 दिन की देरी, प्रशासन की भूमिका पर सवाल 

सदर अनुमंडल न्यायालय** में एक विवादित जमीन पर निर्माण को रोकने के लिए 31 अगस्त 24 को धारा वीएनएसएस 163 लागू करने की अनुशंसा हेतु एक आवेदन दिया गया। इस पर अनुमंडल अधिकारी ने अंचल अधिकार से जांच रिपोर्ट की मांग की। हालांकि, जांच रिपोर्ट तैयार करने और सौंपने में 119 दिनों से अधिक का समय लग गया, जिससे प्रशासन की कार्यप्रणाली और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।  
जांच रिपोर्ट में देरी और अस्पष्टता 
31 अगस्त24 को जब विवादित जमीन पर निर्माण रोकने के लिए आवेदन दिया गया था, तो न्यायालय ने तत्परता से कार्रवाई करते हुए अंचल अधिकारी नगर से जांच रिपोर्ट की मांग की। लेकिन जांच रिपोर्ट समय पर नहीं दी गई।  
जांच रिपोर्ट में देरी का कोई ठोस कारण नहीं बताया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि **"आवेदक जमीन खरीदने की हैसियत में नहीं था,"** जबकि यह विवाद सिविल न्यायालय में विचाराधीन है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि विवादित जमीन पर निर्माण कार्य जारी है। प्रथम तल तक का काम पूरा हो चुका है, और काम लगातार जारी है।
निर्माण का समय: जांच का विषय
यह स्पष्ट नहीं किया गया कि विवादित जमीन पर निर्माण आवेदन से पहले शुरू हुआ था या आवेदन के बाद। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि यदि निर्माण आवेदन के बाद भी जारी रहा, तो यह प्रशासन की गंभीर लापरवाही को दर्शाता है।  
 मामला न्यायालय में, पर सवाल निर्माण पर  
जब मामला न्यायालय में लंबित है और आवेदक ने न्याय के लिए गुहार लगाई है, तो यह कहना कि वह जमीन खरीदने की हैसियत में नहीं था, प्रशासन की जिम्मेदारी से भागने का प्रतीक है।
 यह सिविल न्याय काप मामला है, जिसकी सुनवाई न्यायालय में होनी चाहिए।
निर्माण जारी रहने का दोष किसका? 
आवेदन के बाद निर्माण कार्य जारी रहना कई सवाल खड़े करता है:  
1. निर्माण कार्य की निगरानी किसकी जिम्मेदारी थी? 
2. क्या प्रशासन ने निर्माण को रोकने के लिए कोई कदम उठाया?  
3. निर्माण कार्य में लगे पक्षों से कोई स्पष्टीकरण क्यों नहीं मांगा गया?  
यह स्पष्ट है कि यदि प्रशासन ने समय पर कार्रवाई की होती, तो निर्माण कार्य रोका जा सकता था।  
जमीन की नाप के बजाय 'हैसियत' की जांच?
आवेदन में विवादित जमीन पर निर्माण रोकने की मांग की गई थी। इसके बजाय, जांच में प्रशासन ने **जमीन की वैधता और स्थिति स्पष्ट करने के बजाय आवेदक की आर्थिक स्थिति ('हैसियत') पर ध्यान केंद्रित किया।
** यह न्याय प्रक्रिया को भटकाने जैसा प्रतीत होता है।  
 प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल  
इस पूरे मामले में प्रशासन की निष्क्रियता और ढीले रवैये ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं:  
- जांच रिपोर्ट में 119 दिनों की देरी क्यों हुई?  
- क्या प्रशासन ने जानबूझकर इस मामले को लटकाने की कोशिश की?  
- विवादित जमीन पर निर्माण कार्य को रोकने में प्रशासन क्यों असफल रहा?  
 निष्कर्ष
यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और न्यायिक प्रक्रिया में बाधा का प्रतीक बन गया है। जांच में हुई देरी, आवेदक की 'हैसियत' पर सवाल उठाना, और निर्माण कार्य जारी रहने देना, प्रशासन की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा करता है।  
यह मामला न्यायालय और प्रशासनिक प्रणाली दोनों से विस्तृत जांच और जवाबदेही की मांग करता है। विवादित जमीन पर निर्माण को रोकने में देरी ने न केवल आवेदक के न्याय पाने के अधिकार को प्रभावित किया है, बल्कि न्यायपालिका और प्रशासन की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े किए हैं। 

 report 

      vedraj 

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