होम्योपैथी-क्रोनिक किडनी रोग प्रबंधन में आशा की किरण वर्ल्ड किडनी डे, गुर्दा रोग की रोकथाम क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) एक गंभीर ...
होम्योपैथी-क्रोनिक किडनी रोग प्रबंधन में आशा की किरण वर्ल्ड किडनी डे, गुर्दा रोग की रोकथाम
क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। यह धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और जब तक इसका पता चलता है, तब तक किडनी को काफी नुकसान हो चुका होता है। इस कारण उपचार के विकल्प सीमित हो जाते हैं। 13 मार्च, 2025 को विश्व किडनी दिवस के अवसर पर, यह ज़रूरी है कि हम पारंपरिक चिकित्सा के साथ-साथ अन्य संभावनाओं की भी चर्चा करें आधुनिक चिकित्सा मुख्य रूप से डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट पर निर्भर करती है। ये जीवन बचाने के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनके साथ कई चुनौतियाँ भी जुड़ी होती हैं। डायलिसिस के लिए बार-बार अस्पताल जाना पड़ता है, जिससे मानसिक और शारीरिक तनाव के साथ आर्थिक बोझ भी बढ़ता है। वहीं, किडनी प्रत्यारोपण की अपनी जटिलताएँ हैं-डोनर की कमी, ऑपरेशन की जटिलता और अस्वीकृति का जोखिम। ऐसे में ज़रूरत होती है एक ऐसे दृष्टिकोण की, जो पारंपरिक उपचारों के साथ मिलकर रोगियों को राहत दे सके। गुर्दा फ़ेल होना अथवा खराब होना असंक्रामक रोग होने के बावजूद विश्व भर में तेज़ी से फैल रहा है।इसके रोगियों की संख्या, पूरे विश्व में लगभग 850 करोड़ से ज़्यादा है। 10 में से हर 1 व्यक्ति गुर्दे की बीमारी की चपेट में है। अनुमानित है की सन 2040 तक ये रोग पांचवां स्थान पर पहुँच जाएगा,रोगियों के मौत का कारण बन कर। विकसित देशों में इस रोग के उपचार हेतु डायलिसिस और ट्रांसप्लांट पर ख़र्च होने वाला वार्षिक व्यय लगभग 2-3% होता है उस देश के वार्षिक स्वास्थ्य बजट का। अविकसित और गरीब देशों में तो इसका इलाज सब रोगियों को मिल पाना कल्पना के परे है। पर जैसे लिवर सिरोसिस, कैंसर अथवा हृदय सम्बन्धी रोगों का पता अधिकांशतः पहले से पता नहीं चल पाता,अपितु गुर्दे की बीमारी का पता करना आसान है और बहुत सस्ती खून, पेशाब की जांच से और कुछ रोगियों में अल्ट्रासाउंड से इसका निदान बहुत सरलता से किया जा सकता है. होम्योपैथी इसी दिशा में एक संभावित विकल्प के रूप में उभर रही है। यह सिर्फ लक्षणों को दबाने के बजाय शरीर की स्व-उपचार क्षमता को मजबूत करने पर ध्यान देती है।
लाल बहादुर शास्त्री होम्योपैथी मेडिकल कालेज फाफामऊ प्रयागराज से पढ़कर निकली, होम्योपैथी और आधुनिक नेफ्रोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ.लुबना कमाल जो एक अनुभवी होम्योपैथिक चिकित्सक,जिन्होंने 20,000 से अधिक सीकेडी रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया है, उन्होंने साक्षात्कार में बताया कि होम्योपैथी एलोपैथी का विकल्प नहीं बल्कि एक पूरक चिकित्सा है। जब होम्योपैथी और एलोपैथी को मिलाकर सही मार्गदर्शन में उपयोग किया जाता है, तो यह किडनी के कार्य को स्थिर कर सकती है, समग्र स्वास्थ्य में सुधार ला सकती है और डायलिसिस की आवश्यकता को कम कर सकती है। डॉ लुबना कमाल ने कहा आखिर गुर्दा रोग होता कैसे हैं. गुर्दा रोग मुख्यता 3 कारण से होता है। 1.उच्च रक्तचाप, 2.मधुमेह यानी रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक होना, 3.दर्द निवारक दवा का निरन्तर उपयोग करते रहने से गुर्दे खराब हो जाते हैं। गुर्दा रोग की प्राथमिक रोकथाम, जो कि सबसे ज़रूरी और आसान है कि प्रत्येक व्यक्ति नमक औसत में खाये,तेल घी,चीनी,शराब के अत्यधिक सेवन से बचे।नियमित योग या किसी भी तरह का व्यायाम करें। रक्तचाप या ब्लड प्रेशर की निरन्तर जांच करवाई जानी चाहिए।क्योंकि बढ़ा हुआ रक्तचाप गुर्दे को हर घड़ी क्षति पहुँचाता रहता है और गुर्दे की इकाई, जिसको नेफ्रॉन कहते हैं, को ध्वस्त करता रहता है। शनै शनै गुर्दा सिकुड़ने लगता है और उसकी कार्य क्षमता कम हो जाती है ।इसलिए अगर रक्तचाप बढ़ा हो तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।चिकित्सक प्राथमिक जांच से ये बताएगा कि रक्तचाप किसी गम्भीर कारण से बढ़ा हुआ है और दवा आवश्यक है या फिर केवल जीवन शैली में सुधार की आवश्यकता है। इसी तरह मधुमेह रोग में रक्त में शक्कर की मात्रा अत्यधिक होने से गुर्दे को क्षति पहुँचने लगती है और मूत्र में एल्ब्यूमिन या प्रोटीन का रिसाव होने लगता है जिसके कारण शरीर में सूजन आने लगती है। इसलिए मुधमेह विशेषज्ञ से सलाह अतिशीघ्र लें और जीवनशैली में सुधार करें। जो लोग जोड़ों या शरीर के दर्द से परेशान रहते हैं और निरन्तर, बिना चिकित्सकीय परामर्श के दर्द निवारक गोली का सेवन करते हैं, उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं। ऐसा किशोरावस्था में भी हो सकता है।इसलिए दर्द निवारक गोली या ग़ैर चिकित्सकीय परामर्श के लंबे समय तक कोई दवा खाना उचित नही है। बहुत छोटी बातों का ध्यान रख कर गुर्दे की बीमारी से भारत में बहुत से रोगियों को बचाया जा सकता है। कभी कभी रक्तचाप की माप और वर्ष में केवल एक बार मूत्र और रक्त की जांच करवाने से भी गुर्दा फ़ेल होने से बचाया जा सकता है।
डॉक्टर ने साक्षात्कार में कहा होम्योपैथी किडनी के स्वस्थ होने का समर्थन कैसे करती है? होम्योपैथी का सिद्धांत "जैसे का इलाज वैसे" पर आधारित है, जो शरीर की प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली को सक्रिय कर संतुलन बहाल करता है। सीकेडी में होम्योपैथिक उपचार वयस्क स्टेम कोशिकाओं को सक्रिय करने और नेफ्रॉन पुनर्जनन को बढ़ाने में सहायक हो सकता है, जिससे किडनी का कार्य बना रहता है। होम्योपैथी के प्रमुख लाभ-1.लक्षणों से राहत- यह प्रोटीनुरिया, एडिमा, मतली, थकान और अवसाद जैसे लक्षणों को कम करने में मदद करता है।2.रोग की प्रगति को धीमा करना- चयापचय और प्रतिरक्षा तंत्र को सुधार कर किडनी की गिरावट की गति को कम कर सकता है। 3.विषहरण और सूजन नियंत्रण- यह रक्त से विषाक्त पदार्थों को हटाने, ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने और किडनी की क्षति को रोकने में सहायक है। 4.समग्र उपचार दृष्टिकोण-यह केवल किडनी पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, रोगी की संपूर्ण जीवनशैली और भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर कार्य करता है। 5.रोग को पलटने की संभावना- कुछ मामलों में, होम्योपैथी किडनी की कार्यक्षमता को पुनः सुधारने में सहायक हो सकती है। 6.सुरक्षित और दुष्प्रभाव रहित- प्राकृतिक स्रोतों से बनी ये दवाएँ गैर-विषाक्त होती हैं और लंबे समय तक उपयोग के लिए सुरक्षित मानी जाती हैं। 7.किडनी फंक्शन में सुधार- यह सीरम क्रिएटिनिन,यूरिया नाइट्रोजन और यूरिक एसिड के स्तर को स्थिर करने में मदद कर सकती है। 8.बेहतर जीवन गुणवत्ता- यह रोगी की जीवन शक्ति,भावनात्मक संतुलन और समग्र भलाई को बेहतर बनाने में सहायक हो सकती है।
डॉ.लुबना कमाल ने बताया कि वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि और नैदानिक अवलोकन हालांकि होम्योपैथी पर अभी अधिक नियंत्रित क्लिनिकल ट्रायल की आवश्यकता है, लेकिन रोगियों के अनुभवों और चिकित्सकीय अवलोकनों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यह चिकित्सा पद्धति किडनी की कार्यक्षमता बनाए रखने में मदद कर सकती है। आधुनिक शोधकर्ता भी होम्योपैथिक उपचारों के प्रभावों का गहराई से अध्ययन कर रहे हैं, और शुरुआती निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि यह सीकेडी रोगियों के लिए एक प्रभावी सहायक उपचार हो सकती है। डॉ.लुबना कमाल ने कहा कि भविष्य की संभावनाएँ हैं जो समग्र और एकीकृत देखभाल की ओर चिकित्सा जगत अब केवल रोग के लक्षणों के इलाज तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि समग्र उपचार की ओर बढ़ रहा है। यह बदलाव खासतौर पर उन बीमारियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो पुरानी और जटिल होती हैं, जैसे कि क्रोनिक किडनी रोग।एलोपैथी और होम्योपैथी का समन्वित उपयोग न केवल रोगियों को अधिक उपचार के अवसर प्रदान करता है, बल्कि इससे उनकी जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो सकती है। होम्योपैथी, अपनी प्राकृतिक और सुरक्षित चिकित्सा पद्धति के कारण, सीकेडी जैसी दीर्घकालिक बीमारियों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।आधुनिक चिकित्सा के साथ तालमेल एलोपैथी और होम्योपैथी को मिलाकर उपयोग करने से मरीजों को अधिक व्यापक और प्रभावी उपचार मिल सकता है। आधुनिक नैदानिक उपकरणों और एलोपैथिक हस्तक्षेपों के साथ होम्योपैथी को जोड़ने से न केवल रोग की प्रगति को धीमा किया जा सकता है, बल्कि रोगियों को डायलिसिस की आवश्यकता को भी टाला या विलंबित किया जा सकता है।उन्होंने बताया कि क्रोनिक किडनी रोग से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। जहाँ एलोपैथी जीवन-रक्षक हस्तक्षेप प्रदान करती है, वहीं होम्योपैथी रोगियों को एक सहज, सुरक्षित और समग्र उपचार का विकल्प देती है। यह पद्धति केवल लक्षणों को दबाने के बजाय, शरीर की स्व-उपचार क्षमता को सक्रिय करने पर जोर देती है, जिससे मरीजों को बेहतर जीवन गुणवत्ता मिल सकती है।13 मार्च, 2025 के विश्व किडनी दिवस पर, यह ज़रूरी है कि हम स्वास्थ्य देखभाल के अधिक समग्र और रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाएँ। होम्योपैथी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिससे सीकेडी रोगियों के लिए एक नई आशा का संचार हो सकता है। लेकिन अगर सरकार इस दिशा में कदम बढ़ाए तो मूत्र में एल्ब्यूमिन, रक्त में शक्कर और क्रिएटिनिन की जांच मात्र 100 रुपये में कही भी हो सकती है। सरकार से मेरा निवेदन है कि सभी सरकारी अस्पतालों में माह में एक बार इस तरह के शिविर का आयोजन होते रहना चाहिए जिसमें किसी भी व्यक्ति के रक्तचाप की माप हो और प्रमुख रोगों के लिए रक्त और मूत्र की जांच 50-100 रुपये में हो। गुर्दे की बीमारी का महंगा इलाज कर पाना वर्तमान में बहुत से लोगों के लिए सम्भव नही है पर इस रोग की पहचान और इसकी रोक थाम करके बहुत लोगों का जीवन बचाया जा सकता है
रिपोर्ट विजय कुमार मिश्रा
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