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प्रयागराज कुंभ मेले का संक्षिप्त इतिहासNews

 * कुंभ मेले का संक्षिप्त इतिहास : कुंभ मेले की शुरुआत किसने और कब की* महाकुंभ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। महाकुंभ सिर्फ एक म...


 *कुंभ मेले का संक्षिप्त इतिहास : कुंभ मेले की शुरुआत किसने और कब की*

महाकुंभ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं है बल्कि यह आस्था, परंपरा और हिंदू संस्कृति का संगम है। श्रद्धालुओं के लिए यह एक पवित्र एहसास है। जिसका इंतजार सभी श्रद्धालुओं को बेसब्री से रहता है। इस बार 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ लग रहा है। सरल शब्दों में समझें तो 12 साल लगातार 12 वर्षों के तक लगने के बाद पूर्ण महाकुंभ लगता है। महाकुंभ से जुड़े कई ऐसे रहस्य हमारे ग्रंथों में छिपे हुए हैं जिन्हें उजागर करना जरूरी है। तो आइए जानते हैं महाकुंभ से जुड़े कुछ रहस्य। साथ ही जानते हैं कब और कहां सबसे पहले हुआ था महाकुंभ का आयोजन।
देखा जाए तो कुंभ मेले का इतिहास काफी पुराना है। भारत में यह मेला बहुत अनूठा है जिसमें पूरी दुनिया से लोग आते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं। इसका अपना ही धार्मिक महत्व है और यह संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है। जिसमें दुनिया भर से साधू, संत, तपस्वी, तीर्थयात्री, इत्यादि भक्त इसमें भाग लेते हैं।
परन्तु क्या आप कुंभ का अर्थ जानते हैं, इसे क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे का इतिहास क्या है, किसने कुंभ मेले की शुरुआत की इत्यादि आइये लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेला 12 वर्षों के दौरान 4 बार मनाया जाता है। कुंभ मेले का आयोजन 4 तीर्थ स्थलों में होता है, ये स्थान हैं : उत्तराखंड में गंगा नदी पर हरिद्वार, मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी पर उज्जैन, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी पर नासिक और उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियों के संगम पर प्रयागराज।
आपको बता दें कि इस वर्ष कुंभ मेला 13 जनवरी, 2025 को प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में आरम्भ हुआ है और 08 मार्च 2025 तक चलेगा।
*⭐ कुंभ मेले का इतिहास-*
कुंभ मेला दो शब्दों कुंभ और मेला से बना है। कुंभ नाम अमृत के अमर पात्र या कलश से लिया गया है जिसे देवता और राक्षसों ने प्राचीन वैदिक शास्त्रों में वर्णित पुराणों के रूप में वर्णित किया था। मेला, जैसा कि हम सभी परिचित हैं, एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'सभा' या 'मिलना'
पुराणों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी और कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हो गई थी। तो आइये समुद्र मंथन से जुड़ी हुई इस कहानी के बारे में अध्ययन करते हैं।
_♦️ "ऐसा कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया था। ऐसे में सब देवता मिलकर विष्णु भगवान के पास गए और सारा व्रतांत सुनाया। तब भगवान ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र यानी क्षीर सागर में मंथन करके अमृत निकालने को कहा। ये दूधसागर ब्रह्मांड के आकाशीय क्षेत्र में स्थित है। सारे देवता भगवान विष्णु जी के कहने पर दैत्यों से संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए। जैसे ही समुद्र मंथन से अमृत निकला देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर उड़ गया। इस पर गुरु शंकराचार्य के कहने पर दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और काफी परिश्रम करने के बाद दैत्यों ने जयंत को पकड़ लिया और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और राक्षसों में 12 दिन तक भयानक युद्ध चला।" ♦️_
_♦️ "ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध के दौरान प्रथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश की कुछ बूंदे गिरी थी। जिनमें से पहली बूंद प्रयागराज में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी नासिक में गिरी थी। इसीलिए इन्हीं 4 स्थानों पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। आपको बता दें कि देवताओं के 12 दिन, पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैं। इसलिए हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।" ♦️_
कुंभ मेले का पहला लिखित प्रमाण भागवत पुराण में उल्लिखित है। कुंभ मेले का एक अन्य लिखित प्रमाण चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के कार्यों में उल्लेखित है, जो हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ईस्वी में भारत आया था। साथ ही समुद्र मंथन के बारे में शिव पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, भविष्य पुराण समेत लगभग सभी पुराणों में जिक्र किया गया है। 
- *कूर्म पुराण के अनुसार,* यहां स्नान से सभी पापों का विनाश होता है और मनोवांछित उत्तम भोग प्राप्त होते हैं। यहां स्नान से देवलोक भी प्राप्त होता है।
- *भविष्य पुराण के अनुसार,* स्नान के पुण्य स्वरूप स्वर्ग मिलता है ओर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- *स्कन्द पुराण के अनुसार,* भक्ति भावपूर्वक स्नान करने से जिनकी जो कामना होती है। वह निश्चित रूप से पूर्ण होती है।
- *अग्निपुराण में कहा गया है कि,* इससे वही फल प्राप्त होता है जो करोड़ों गायों का दान करने से मिलता है।
- *ब्रम्ह पुराण में कहा गया है कि,* स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ जैसा फल मिलता है और मनुष्य सर्वथा पवित्र हो जाता है।
- *महाभारत में,* इसके पुण्य फल की चर्चा करते हुए इसे असीम कहा गया है क्योंकि स्वयं ब्रम्हाजी उसके तत्व को बताने में असमर्थ हैं।
कुंभ मेले में, पहले स्नान का नेतृत्व संतों द्वारा किया जाता है, जिसे कुंभ के शाही स्नान के रूप में जाना जाता है और यह प्रातःकाल 3:00 बजे शुरू होता है। संतों के शाही स्नान के पश्चात ही आम लोगों को पवित्र नदी में स्नान करने की अनुमति मिलती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो इन पवित्र नदियों के जल में डुबकी लगाते हैं, वे अनंत काल तक धन्य हो जाते हैं। और यही नहीं, वे पाप मुक्त भी हो जाते हैं और उन्हें मुक्ति के मार्ग की ओर ले जाता है।
यह भी माना जाता है कि कुंभ योग के समय गंगा का पानी सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है और कुंभ के समय जल, सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की सकारात्मक विद्युत चुम्बकीय विकिरणों से भरा होता है।
प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ का महत्व अधिक माना गया है। दरअसल, यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। जिस वजह से यह स्थान अन्य जगहों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। बता दें सरस्वती नदी लुप्त हो चुकी हैं लेकिन, वह धरती का धरातल में आज भी बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इन तीन नदियों के संगम में शाही स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए प्रयागराज में इसका महत्व अधिक माना जाता है।
चार शहरों में से प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन, प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला सबसे पुराना है। तो अब आप जान गए होंगे कि कुंभ मेले का आयोजन कब, कहां और कैसे किया जाता है।

  report
      Vijay Kumar Mishra

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